पं. लोकनाथ तरà¥à¤•à¤µà¤¾à¤šà¤¸à¥à¤ªà¤¤à¤¿ की ऋषि दयाननà¥à¤¦ और आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿
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Manmohan Kumar AryaDate
29-Apr-2016Category
à¤à¤¾à¤·à¤£Language
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UmeshUpload Date
02-May-2016Download PDF
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आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की दूसरी पीढ़ी के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤•à¥‹à¤‚ में अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ महारथी, तरà¥à¤•à¤ªà¤Ÿà¥ तथा वागà¥à¤®à¥€ पं. लोकनाथ तरà¥à¤•à¤µà¤¾à¤šà¤¸à¥à¤ªà¤¤à¤¿ का नाम अनà¥à¤¯à¤¤à¤® है। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की 10 अपà¥à¤°à¥ˆà¤², सनॠ1875 को सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के कà¥à¤› वरà¥à¤· बाद आपका जनà¥à¤® कोट अदà¥à¤¦à¥‡ जिला मà¥à¤œà¤«à¥à¤«à¤°à¤—ढ़ (पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨) में हà¥à¤† था। आपका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ मà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¨ (पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨) तथा उसके बाद उन दिनों विदà¥à¤¯à¤¾ की नगरी काशी में हà¥à¤†à¥¤ मà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¨ में ही महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के अननà¥à¤¯ à¤à¤•à¥à¤¤ व आरà¥à¤· पà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾ के धनी वेदों के विशà¥à¤µ विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पं. गà¥à¤°à¥à¤¦à¤¤à¥à¤¤ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ की जनà¥à¤® à¤à¥‚मि à¤à¥€ है। काशी में विदà¥à¤¯à¤¾ पूरी करके पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ लोकनाथ जी सनॠ1915 में आरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ सà¤à¤¾, पंजाब के उपदेशक बन गये। देश विà¤à¤¾à¤œà¤¨ से पूरà¥à¤µ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की वैदिक शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं, मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का आपका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ पंजाब, सिनà¥à¤§, तथा उतà¥à¤¤à¤° पशà¥à¤šà¤¿à¤® सीमानà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ रहा। आपने अपने जीवन में विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मतावलमà¥à¤¬à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से सैकड़ों शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ किये। 14 अगसà¥à¤¤, सनॠ1947 को देश विà¤à¤¾à¤œà¤¨ के बाद आप दिलà¥à¤²à¥€ आ गये और यहां रहते हà¥à¤ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ दीवान हाल को आपने अपनी पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° गतिविधियों का केनà¥à¤¦à¥à¤° बनाया। सितमà¥à¤¬à¤° सनॠ1957 को आपने संसार से विदाई ली अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ आप इस संसार को छोड़ गये।
आप बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ कवि à¤à¥€ थे। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ में यजà¥à¤ž के अननà¥à¤¤à¤° देश विदेश और यतà¥à¤°-ततà¥à¤° पौराणिकों में à¤à¥€ गाई जाने वाली यजà¥à¤ž पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾, ‘यजà¥à¤ž रूप पà¥à¤°à¤à¥‹ हमारे à¤à¤¾à¤µ उजà¥à¤œà¤µà¤² कीजिà¤, छोड़ देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिà¤, वेद की बोलें ऋचायें सतà¥à¤¯ को धारण करें, हरà¥à¤· में हों मगà¥à¤¨ सारे शोक सागर से तरें।।’ के रचयिता आप ही हैं। यह गीत वा à¤à¤œà¤¨ इतना लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ है कि आज यह करोड़ों आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ कà¥à¤› पौराणिकों की जिहà¥à¤µà¤¾ पर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहता है। कहीं यजà¥à¤ž हो उसके बाद इसका समूह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। यह à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से यजà¥à¤ž की आरती बन गया है। देश विदेश के सà¤à¥€ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œà¥‹à¤‚ व आरà¥à¤¯ परिवारों में तो यह पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ गाया ही जाता है।
आपके जीवन की दूसरी पà¥à¤°à¤®à¥à¤– घटना यह है कि आपने अमर आरà¥à¤¯ शहीद सरदार à¤à¤—तसिंह जी का यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ संसà¥à¤•à¤¾à¤° à¤à¤—तसिंह जी के दादा सरदार अरà¥à¤œà¥à¤¨ सिंह, पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह, माता विदà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¤à¥€ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ पारिवारिक जनों की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में कराया था। यह à¤à¥€ बता दें कि सरदार à¤à¤—त सिंह के दादा सरदार अरà¥à¤œà¥à¤¨ सिंह महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के कटà¥à¤Ÿà¤° अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ थे और पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ हवन किया करते थे। à¤à¤—त सिंह जी का पूरा परिवार ही आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œà¥€ था। यह à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ को पिता व आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ को माता मानने वाले लाला लाजपतराय जी पर अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किठगये पà¥à¤°à¤¬à¤² लाठी पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤° का बदला लेने के लिठही सरदार à¤à¤—तसिंह ने पà¥à¤²à¤¿à¤¸ आफीसर जान साणà¥à¤¡à¤°à¥à¤¸ को गोली मारी थी। इसके बाद वह अपने बाल कटा कर à¤à¤• अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ जीवन शैली के यà¥à¤µà¤• के रूप में दà¥à¤°à¥à¤—ाà¤à¤¾à¤à¥€ के साथ कलकतà¥à¤¤à¤¾ गये थे और वहां की किसी अनà¥à¤¯ संसà¥à¤¥à¤¾ में नहीं, अपितॠआरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ कलकतà¥à¤¤à¤¾ में ही गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤µà¤¾à¤¸ किया था। हमारा यह à¤à¥€ अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है कि à¤à¤—तसिंह जी को देशà¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ के संसà¥à¤•à¤¾à¤° à¤à¤• ओर जहां अपने दादा, माता-पिता और चाचा से मिले वहीं उनके निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ लोकनाथ तरà¥à¤•à¤µà¤¾à¤šà¤¸à¥à¤ªà¤¤à¤¿, लाहौर के दयाननà¥à¤¦ à¤à¤‚गà¥à¤²à¥‹ वैदिक कालेज और वहां à¤à¤¾à¤ˆ परमाननà¥à¤¦ सहित आरà¥à¤¯ विचारधारा के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ की शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं की à¤à¥€ à¤à¥‚मिका थी। à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ बात यह à¤à¥€ बता दें कि पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ लोकनाथ तरà¥à¤•à¤µà¤¾à¤šà¤¸à¥à¤ªà¤¤à¤¿ के पौतà¥à¤° राकेश शरà¥à¤®à¤¾ हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अमेरिका के चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¨ में अनà¥à¤¤à¤°à¤¿à¤•à¥à¤· यातà¥à¤°à¥€ के रूप में चनà¥à¤¦à¥à¤° पर अपने पैर रखे थे। यह विचार कर à¤à¥€ आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को गौरव मिलता है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ से महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के à¤à¤• à¤à¤•à¥à¤¤ का पौतà¥à¤° पà¥à¤°à¤¥à¤® चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ पर पहà¥à¤‚चा है।
आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के वयोवृदà¥à¤§ शीरà¥à¤·à¤¸à¥à¤¥ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ डा. à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€à¤²à¤¾à¤² à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ अपनी पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• ‘‘आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ महारथी” में पं. लोकनाथ तरà¥à¤•à¤µà¤¾à¤šà¤¸à¥à¤ªà¤¤à¤¿ के विषय में लिखते हैं कि ‘आप मूलतः सिनà¥à¤§ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के निवासी थे, परनà¥à¤¤à¥ आपका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° पंजाब रहा। आप आरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶à¤¿à¤• सà¤à¤¾ पंजाब के उपदेशक à¤à¥€ रहे। अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¾, तरà¥à¤•à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤£à¤¾à¤¤ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ महारथी तथा करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤£à¥à¤¡ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ à¤à¤¾à¤µà¥à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥ थे। आपने पौराणिकों तथा अनà¥à¤¯ विधरà¥à¤®à¥€ विदà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से अनेक शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ किये। पौराणिक आसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं पर इनके पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤° बड़े तीखे à¤à¤µà¤‚ तिलमिला देने वाले होते थे। इन पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लेखक (डा. à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€à¤²à¤¾à¤² à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯) ने पं. लोकनाथ जी को पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ पौराणिक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥ पं. माधवाचारà¥à¤¯ तथा पं. अखिलाननà¥à¤¦ शरà¥à¤®à¤¾ से शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ करते हà¥à¤ नवमà¥à¤¬à¤°, 1953 में डीडवाना (राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨) में देखा था। (इस शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ को 63 वरà¥à¤· हो गये। हमारा सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ है कि आज à¤à¥€ डा. à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ हमारे बीच विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है और गंगानगर में रहते हैं। हम उनके सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ जीवन à¤à¤µà¤‚ दीरà¥à¤˜ आयॠकी ईशà¥à¤µà¤° से कामना करते हैं। ) पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ लोकनाथ जी का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ कितना गूढ़, शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ शैली कितनी रोचक और पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ थी, यह देखते ही बनता था। उकà¥à¤¤ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ में माधवाचारà¥à¤¯ ने मृतक शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ को वैदिक तथा ऋषि दयाननà¥à¤¦ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को अवैदिक सिदà¥à¤§ करना चाहा परनà¥à¤¤à¥ पं. लोकनाथ जी के तरà¥à¤• पूरà¥à¤£ पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° से विपकà¥à¤·à¥€ पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ के छकà¥à¤•à¥‡ छूट गये। à¤à¤• बार तो संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿ के शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ पà¥à¤°à¤•à¤°à¤£ में उलà¥à¤²à¤¿à¤–ित सवà¥à¤¯-अपसवà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤°à¤£ के विषय में पं. माधवाचारà¥à¤¯ के गलत बयानी करने पर पं. लोकनाथ जी ने उसे जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° ललकार कर चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ दी, उससे पं. माधवाचारà¥à¤¯ का चेहरा फकà¥à¤• हो गया तथा उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ जनता को पौराणिक मत की निरà¥à¤¬à¤²à¤¤à¤¾ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रूप से मालूम हो गई।’
पं. लोकनाथ केवल शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ समर के शूर-सेनापति ही नहीं थे अपितॠउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आरà¥à¤¯à¤œà¥€à¤µà¤¨ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ को अपने वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त जीवन में साकार रूप से ढाला था। अपने पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨à¥‹à¤‚ में वे संधà¥à¤¯à¤¾, सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯, सतà¥à¤¸à¤‚ग, संसà¥à¤•à¤¾à¤° आदि पंचसकारों के कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• आचरण पर जोर देते थे। उनकी कथनी और करनी में कोई अनà¥à¤¤à¤° नहीं था। पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ लोकनाथ जी ने ‘à¤à¤•à¥à¤¤ गीता’ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• लिखी जिसमें आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के नितà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ किये जाने वाले करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤£à¥à¤¡ का संगà¥à¤°à¤¹ किया। ऋषि दयाननà¥à¤¦ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उनमें पà¥à¤°à¤—ाढ़ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ व à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ थी। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ चालीसा की तरà¥à¤œ पर ‘ऋषिराज चालीसा’ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• लिखकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ को अपनी कावà¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤£ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤œà¤‚लि à¤à¥‡à¤‚ट की थी। ‘महरà¥à¤·à¤¿ महिमा’ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ तथा हिनà¥à¤¦à¥€ का आपका मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ कावà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। à¤à¤•à¥à¤¤ गीता और पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¤ गीत तथा पà¥à¤°à¤à¥ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¤à¥‹à¤¤à¥à¤° आपकी अनà¥à¤¯ तीन पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ हैं। यह दà¥à¤ƒà¤– का विषय है कि इस समय आपकी कोई à¤à¥€ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¯ नहीं है। कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ आरà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की निजी लाइबà¥à¤°à¥‡à¤°à¥€ में यह अवशà¥à¤¯ हो सकती हैं परनà¥à¤¤à¥ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ पीढ़ी उनकी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ वा विचारों के लाठसे वंचित है। काश कि कोई विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤• इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ करने का साहस करे। पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ जी का à¤à¤• शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ पौराणिक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ लाहौर छावनी में à¤à¥€ हà¥à¤† था।
हमें पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करने पर à¤à¥€ पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ लोकनाथ तरà¥à¤•à¤µà¤¾à¤šà¤¸à¥à¤ªà¤¤à¤¿ जी का कोई चितà¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं हो सका। उनके चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ पौतà¥à¤° शà¥à¤°à¥€ राकेश शरà¥à¤®à¤¾ के अनेक चितà¥à¤° उपलबà¥à¤§ हैं, अतः हम लेख में उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ का चितà¥à¤° दे रहे हैं। पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ जी को आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ ने पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ à¤à¥à¤²à¤¾ दिया है। इसी कारण हमने उनका संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ उपलबà¥à¤§ परिचय इस लेख के माधà¥à¤¯à¤® से पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है। हम डा. à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जी की सामगà¥à¤°à¥€ का उपयोग करने के लिठउनका हारà¥à¤¦à¤¿à¤• धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ करते हैं। पाठक यदि इस लेख को पसनà¥à¤¦ करते हैं तो इससे हमारा यह पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ सफल सिदà¥à¤§ होगा। पं. लोकनाथ तरà¥à¤•à¤µà¤¾à¤šà¤¸à¥à¤ªà¤¤à¤¿ जी को हमारी सशà¥à¤°à¤¦à¥à¤§ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि।
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